Lalita Vimee

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औरत, आदमी और छत , भाग 35

भाग,35


  पता नहीं मिन्नी को डिंकी की बातें एक सहेली के प्रश्न जैसी, एक माँ के पछतावे जैसी लगी।उसने तुरंत डिंकी को फोन किया।

    मंमा?

डिकीं , मुझे इस वक्त तुम्हारी बहुत जरूरत है बेटा?

क्या तुम मेरे पास  आ सकती हो इसी वक्त?

मंमी  मै अभी पहुंच ती हूँ, आप घर पर ही हो ना.

मैं थोड़ी देर में यहाँ से निकल जाऊँगी, मैं तुम्हें पता मैसेज कर देती हूँ। रीति को ये सब इसलिए नहीं कह सकती कि वो ये न सोचे कि सारी उम्र मुझे अपने से दूर रखा,अब कुछ बन ग ई  हूँ तो इनको मदद चाहिए। उसे कुछ नहीं कहना बेटा।

मंमी मैंअभी बस पकड़ती हूँ बस अपना ध्यान रखें आप। तीन घंटे में आपके पास  हूंगी मैं।

एक पल के सन्नाटे   के बाद फोन फिर बजा था।

डिंकी

नहीं ,रीति हूँ मंमी, डिंकी के फोन मे  स्पीकर आन था। डुग्गू यहाँ नहीं था, इसे लगा ये अकेली है मैंने आपकी सब बातें सुन ली हैं। मुझे इतना गैर समझ लिया कि बड़ी बेटी से छिपाकर छोटी को दर्द बतायेंगी।आप चुपचाप दिल्ली की बस पकड़ ले,अपनी दवा और फाइल साथ में रखे।  बस में बैठते ही हमें फोन करें।  मेरा नम्बर ड्राइवर या कंडक्टर को दे देवे, ताकि  गर आपको कोई समस्या हो तो वो तुरंत मुझसे बात कर ले।
आप थोड़ा जल्द निकलने की कोशिश करें। ठंडे दिन हैं अंधेरा जल्दी हो जाता है।
  मिन्नी सोच ही रही थी कि क्या करे, तभी गाड़ी   स्टार्ट हुई थी, मतलब वीरेंद्र चला गया था। दो मिनिट बाद ही उसने दरवाजा खोला माँ बाहर नहीं थी शायद अपने कमरे में ही थी। मिन्नी अपनी फाइल और पर्स उठा कर बैडरूम मे ले ग ई एक छोटे बैग में चार जोड़ी कपड़े और फाइल पर्स डालकर चुपचाप बाहर निकल गई थी। बहुत आरम से दरवाजा खोल कर बहुत आराम से ही बंद कर दिया था। 

     तेज कदमों से गली पार की थी तभी आटो मिल गया था।
    बसस्टेंड पहुंची तो देहली की बस तैयार ही खड़ी थी। सीट भी मिल गई। खिड़की की सीट ही मिली थी उसे। बस चल पड़ी थी। रीति को फोन कर दिया था। मिन्नी की सीट की बगल.मे  एक लड़की बेठी थी उसे अपनी समस्या बता कर रीति का नम्बर भी दे दिया था।  बस में बैठते ही नींद आ गई थी। रीति के फोन से ही आँख खुली थी।

मंमा मैं बसस्टैंड के लिए निकल रही हूँ। आप भी शायद दिल्ली पहुंचने वाली होंगी।

दिल्ली पहुंच ग ई हूँ बेटा  बीस मिनिट तक बसस्टैंड पर पहुंच जायेगी बस।

तभी फिर फोन की घंटी बजी थी। वीरेंद्र का था।

कहाँ है?

आप से बहुत दूर हूँ।

बकवास बंद करो, माँ को बता कर नहीं जा सकती थी कितनी परेशान हैं वो।  कहाँ है मैं लेने आ जाता हूँ।

आपने कहा थ न यहाँ क्या कर रही हो जाओ जहाँ जाना है, तो मुझे जहाँ जाना था मैं चली गई।

परेशान करके गुस्सा मत दिलाओ मिन्नी मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ।

मैने अपनी तरफ की   आप की सभी परेशानियाँ खत्म कर दी हैं।
तुम किसी व्हीकल पर हो क्या?

आप मेरी चिंता छोड़े और खुद पर ध्यान केंद्रित करे। फोन काट दिया था।

तभी फिर घंटी बजी थी, मिन्नी अंधेरा होने  वाला है, तुम्हारी तबीयत भी ठीक नहीं है।

मेरी तबियत की चिंता मैं खुद कर लूंगी, आप  लोगों को परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है।

मिन्नी कहाँ  है तूं?
मर गई आपके लिए और प्लीज अब मुझे फोन मत करें।

तूं तेरे भाई के घर तो नहीं चली ग ई?

मैं वहाँ नहीं हूँ, कभी वहाँ फोन करके मेरी पूछताछ करें।

तभी बस रूक गई थी। आई एस बी टी आ चुका था।

मिन्नी ने फोन काट कर रीति को किया था। मंमा यहाँ खड़ी हूँ आपकी बस य हीं रूकेगी आकर। आराम से उतर आयें।

तभी फिर फोन की घंटी बजी थी। मिन्नी ने काट दिया था।

वो उतरी तो रीति सामने ही खड़ी थी।माँ के हुलिए को देखकर उसे धक्का सा लगा था। सलवटों वाला सूट, बिखरे से बाल, बहुत अजी़ब तरह से लपेटा  दुपट्टा। क्या ये वहीं मृणाली  थी जिसके पहनने से कपड़े सुंदर लगते थे।

आ जाओ मंमा, वो माँ को लेकर एक आटो में बैठ ग ई थी।
बीस मिनिट में ही घर पहुंच ग ए थे। मिन्नी का मोबाईल साइलेंट पर था और वीरेंद्र की काल बार  बार आ  रही थी। डिंकी ने मोबाईल  आफ कर दिया था।

  आन्टी चाय बनाने जाने लगी तो मिन्नी ने कहा था, कुछ बिस्किट वगैरह हों तो उठा ला डिंकी , बहुत भूख लग रही है।

खाना तैयार है मंमी चाय की जगह खाना खालो, मुझे लगता है आपने सुबह से कुछ नहीं खाया।

नहीं एक सेड़विच खाया था सुबह।

नानी चाय रहने दो, मंमी के लिए खाना लगा देती हूँ।

मैं लगाती हूँ तू बैठ मंमी के पास।

रीति अपनी किसी सहेली से फोन पर बात कर रही थी,उसके मामा जी हरियाणा के एक मशहूर प्राकृतिक चिकित्साल्य में मैनेजर थे। रीति ने अपनी सहेली को अपनी मंमा का केस डिटेल भेजा था।जो उसने आपने मामा जी को भिजवाया था कि वो डाक्टर की राय लेकर बतायें।  अभी उसी सहेली का इसी सिलसिले में फोन आया था।

      रीति अंदर आई तो देखा खा मंमी खाना खा रही थी।
  मंमा बताओ सब्जी कैसी बनी है?

हम्म अच्छी बनी है जैसे किसी गहरे कुएँ में से आवाज आई थी।
इसका मतलब अच्छी नहीं बनी। 

नहीं नहीं अच्छी बनी है। आलूमटर की अदरक वाली सब्जी बहुत अच्छी बनती है। 

और आपको अच्छी भी लगती है।

पर तुझे कैसे पता रीति तूं तो मेरे पा स रही ही कहाँ है? मिन्नी की आँखें भर आई थीऔर गला  रूधं गया था।

  मेरी प्यारी  मंमा आपने कहाँ मुझे दूर रखा, रोज तो घर का लंच खाती थी मैं और फिर डिनर में नानी के हाथ का स्नेहिल  और स्वादिष्ट खाना। 

मंमा एक रोटी और खालो न  प्लीज।

नहीं डिंकी मुझसे इन दवाईयों के कारण खाना खाया ही नहीं जाता।बस एक बार तेज भूख लगेगी और फिर एक रोटी  खाते ही जैसे पेट भर जाता है।
कोई  बात नहीं मंमी जितना आपको अच्छा लगे उतना खा लो।
अच्छा मंमी मेरी सहेली ने बताया है कि उन डाक्टर साहब को आपकी रिपोर्ट दिखाई तो उन्होंने बताया कि कुछ योग क्रियाओं और एक दो थेरेपी से ये समस्या बिल्कुल और जल्द ठीक  हो जायेगी। परसों से बुलाया है उन्होंने, वहाँ एक कमरा मिलता है और खाना भी वहीं लोग देते हैं, गर कुछ अलग लेना है तो वहाँ केन्टीन भी है।

  पर अब तो मैं ठीक हूँ  रीति।

  आप बीमार कभी थी ही नहीं, बस  आपकी दिनचर्या में बदलाव लाना जरूरी है। डिंकी कल तेरी ग्यारह बजे क्लास है, क्लास से पहले ही मंमी का  हेयरकट करवा दे ।  अभी बालों में मसाज कर देते हैं ताकि सुबह बाल  धो ले।

   क्या हुआ है मेरे बालों को,ठीक  तो हैं बेटा।

आप कुछ नहीं  बोलेंगे, हम खुद कर लेंगे।

मिन्नी क्या शक्ल बना ली है तुमनें अपनी, तुम्हें याद है नैनीताल गए  थे तो सब  बाहर की टीचर्स क्या कह रही थी,मैडम कितनी अच्छे  दिखते हो आप क्या राज है आपकी पर्सनैलिटी का।

वो दिन और थे आन्टी , तब मुझ में हिम्मत थी सब सहने की अब टूट ग ई हूँ मैं।

कुछ नहीं हुआ बेटा सब ठीक होगा ,सब्र करो।
दरवाजा खुलने की आवाज के साथ ही डुग्गुअंदर आ गया था।
वाट मंमा, आप कब आई?  पहले तो नहीं बताया इन बच्चियों ने की,आप पधारने वाली हैं। वो नाटकीय अंदाज में बोला था।

मिन्नी के करीब फोल्डिंग पर बैठ गया था, मिन्नी ने उसका सिर सहलाया था। मेरा बच्चा।

तभी रीति ने कहा था वो प्राकृतिक चिकित्सालय में मेरी दोस्त ने मंमी की अपॉइंटमेंट   दिलवा दी है,परसो से वहाँ इलाज शुरू हो जायेगा, कल मंमी को लेकर चली जाँऊगी।

अच्छा, मैं भी चलू क्या दी?

तुम्हारी प्रेक्टिस और  पढ़ाई दोनों जरूरी हैं।मैंने तो टेस्ट देने है आनलाइन ,वो तो वहाँ से भी दे दूंगी।

ठीक है दी।

फिर डिंकी और नानी हैं ही यहाँ पर।

खाना खाकर सब सो ग ए थे, बच्चे सुबह जल्दी उठ कर पढ़ते थे।मिन्नी का फोल्डिंग उन्होंने दूसरे कमरे में बिछा दिया था ताकि  माँ को  नींद की कोई असुविधा न हो। आंटी भी मिन्नी के पास ही सोई थी।

वीरेन्द्र जी से कुछ कहासुनी हुई मिन्नी या वेसे ही मन.परेशान है?
बात बात पर हाथ उठा देते हैं आन्टी और हर बार ये कहेंगे कि  चली जा यहाँ से अभी निकल, मेरा कोई वजूद ही नहीं रह गया है जैसे घर में।एक यस मैन बन कर रह गई हूँ।जब तक सब की तीमारदारी की तब तक तो मिन्नी, मिन्नी भाभी और  आज सुबह किसी ने यूं भी नहीं पूछा कि चाय पीनी है या नहीं।ननद तो बिना मिले ही अपने .बड़े भाई के घर चली ग ई और वहाँ से  अपने घर। साहब को इस बात पर गुस्सा आ गया कि मैं डाक्टर के पास अकेली क्यों चली ग ई।
जवाब दो तो थप्पड़ खाओ।।
मिन्नी ऐसा नहीं लगता कि कहीं न कहीं तुम भी जिम्मेदार हो बेटा इस हालत के लिए। तुम किस लिए इतना डर कर रही और ये सब तुम पर हावी  हो ग ए। खैर दिमाग पर ज्यादा  बोझ डालने की जरूरत नहीं है।नौकरी कर रहीं हो, तीनों बच्चे बहुत समझदार हैं तुम्हारे।कोशिश करो कि अब ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जियो न कि तमाम उम्र खुद से छिपने के ठिकाने ढूंढती फिरो।अपने अंदर के उस डर को निकाल दे बेटा, समाज में तुम्हारी खुद की पहचान  है। तुम्हारा अपना भी वजुद है मृणाली ।

मिन्नी उन की गोदी में सिर रख कर फफ़क पड़ी थी।
आन्टी उस का सिर सहलाती रही और वो सो गई थी। 

सुबह सात बजे मिन्नी की आँख खुली तो बच्चे पढ़ रहे थे। डुग्गू प्रेक्टिस के लिए निकल गया था। आन्टी नहाने गई थी।
मिन्नी रसोई में चली गई थी,एक यही ऐब था उसमें सुबह खुद के हाथ की आधा कप चाय। वो चाय लेकर दूसरे कमरे में ही चली ग ई पी ही रही थी कि आन्टी आ ग ई थी। 

बेटा मैं बना देती चाय, तू क्यों उठी।

आज बहुत बेटर फील कर रही हूँ आन्टी।

शुक्र है भगवान का, आन्टी ने  जैसे दुआ में हाथ उपर की तरफ जोड़े थे। 
तुम चाय पियो मिन्नी मैं बच्चों को दूध चाय दे आऊँ और अपने लिए भी बना लूं।

जी आन्टी।

मिन्नी ने मोबाइल आन किया था।वीरेंद्र की सौ मिसकाल थी।
फिर रिकार्ड किए हुए मैसेज।

वाह  रे ज़िंदगी हर इंसान से भरोसा उठवा दिया।यहाँ कोई भी किसी का नहीं होता।

डिंकी ने नौं बजे किसी से समय लिया हुआ था मंमी के हेयरकट के लिए।

आप नहा लो मंमा सिर से तेल निकालो  ।

मैं ठीक हूँ डिंकु सिचुएशन देखा करो, कोई क्या कहेगा?

किस सिचुएशन कौनसी सिचुएशन डियेर मंमी, क्या हुआ है?
प्लीज़ आप नहा ले, फिर आज दीदी और आपको नैचरोपैथी ट्रीटमेंट  के लिए भी जाना है।

मिन्नी को डिकीं पार्लर  में ले ग ई् थी जहाँ उसका हूलिया ही लगभग बदलवा लाई थी।कन्धों तक के बंलट बाल  मिन्नी भी शायद कुछ वर्ष पीछे चली गई थी।

रीति के साथ इस प्राकृतिक चिकित्सालय में आकर मिन्नी को ठीक लगा था, चारों और हरियाली, बिल्कुल शांत वातावरण,
मन मे उठती टीस को भी इस शांत वातावरण ने सहज कर दिया था। मेडिकल की दवा यहाँ के  डाक्टर ने थोड़ी कम कर दी थी।। पर सब ठीक ही चल रहा था।

आज सुबह ही डुग्गु का फोन आया था,उसका अंतरराष्ट्रीय बॉक्सिंग टीम में चयन हो गया है।मिन्नी ने उसे बहुत दुआओं से नवाजा था।  दस दिन म़े ही  उसे कैम्प में जाना था।

रीति दीदी तब तक मंमी ठीक हो जायेगी न।

मंमा ठीक  है चुकी है भाई। बस दो दिन बाद ही उन्हें यहाँ से छुट्टी मिल जायेगी।थोड़ा प्राणायाम का अभ्यास चल रहा है।

फिर मंमी रो क्यों रही हैं दी?

खुशी  में  भी तो इंसान रो पड़ता है डुग्गू, फिर वो तो एक बहुत भावुक माँ  हैं।

जी दी।

वीरेंद्र हर जगहं मिन्नी का पता लगवा चुका था, पर कुछ हाथ नहीं लगा था। कमला भी बात बात में माँ को सुना ग ई थी, "दीदी तो सबके सुख दुख म़े  हर पल खड़ी रहती थीऔर  अब जब वो बीमार हुई तो किसी ने उन्हें चाय के लिए भी नहीं पूछा बेचारी अकेली चाय बना कर  अकेली ही बैठ कर  पीती रही, साहब ,रूपा दीदी आप सब उधर बैठे रहे।और उन्हें बिना बोले रूपा दीदी और साहब बाहर चले ग ए। सच कहा है अम्मा किसी ने चढ़ते सूरज  को सलाम होता  है।
   माँ को पता था कि कमला सही ही कहरही है।इसलिए चुप रही।
तभी वीरेंद्र की झल्लाहट भरी आवाज़ सुनाई दी थी।
कमला चाय दस बजे दोगी क्या?

मुझे जब कहेंगे तब ही  बना दूंगी साहब, मैडम तो यहाँ हैं नहीं जो  ये जान जायें कि कब किस वक्त किस को क्या चाहिए?
मेरे को और भी बहुत काम होता है।

वीरेंद्र चुप रह गया था वो जानता था, मिन्नी के जाने के बाद कमला भी यहाँ खुश नहीं है,और वो चली गई तो काम कैसे होगा। माँ भी बहुत परेशान थी।

तभी फोन की घंटी बजी थी, उसने बड़ी उम्मीद से फोन उठाया था।
  हैल्लो
वीरू सरपंच?
हाँ 
गाँव से ही जगतसिंह बोल रहा हूँ।

बोल भाई?

दिग्विजय तेरे बेटे का नाम है, जो दिल्ली पढ़ता है।
हाँ भाई साहब क्या हुआ?

वीरेंद्र बहुत परेशान होगया था।
तुझे कुछ नहीं पता सरपंच?

भाई साहब प्लीज पहेलियां मत बुझाऐं मेरा दिल बैठा जा रहा  है।

अरे तेरे बेटे का अंतराष्ट्रीय बॉक्सिंग टीम में  चयन हो गया है,
छोटे भाई, वीरू सरपंच।  मुबारक हो।

आप को भी बहुत मुबारक भाई साहब।

  वीरेंद्र को खुशी के साथ एक धक्का भी लगा था कि बच्चों से वो दिली तौर पर इतना दूर  है कि बेटे ने ये खबर भी उसे बतानी जरूरी नहीं समझी। उसके दिमाग में एक बात और आई हो न हो बच्चे मिन्नी के टच म़े हैं गर ऐसा न होता तो वो उसी के पास फोन करते मंमी का नम्बर नहीं लग रहा।
कहीं ऐसा तो नहीं मिन्नी दिल्ली ही हो।

वो फटाफट तैयार होने लगा दिल्ली के लिए, माँ को डुग्गू के बारे में बताया ,तो  माँ ने तुरंत प्रसाद मंगवा कर बटवाया था।
मैं दिल्ली जा रहा हूँ माँ हो सकता है, मिन्नी बच्चों के पास ही होगी।
भगवान करें ऐसा ही हो और वीरू सुन अपनी गलती मान के अपनी औरत को अपनी छत के लिए नीचे ले आ बेटा,गलती तेरी  ही है।
कमला माँ के साथ ही रहना, तेरी दीदी को जल्दी ही लेकर आऊँगा।
जायें साहब, परमात्मा करे ऐसा ही हो।

रास्ते भर पता न हीं किन विचारों में खोया र हा गाड़ी जैसे खुद ही चलती रही। देखते ही देखते बच्चे कितने बड़े हो ग ए हैं उदास आँखों वाली लड़की कहाँ चली ग ई है।क्या मैं उससे प्यार नहीं करता?उस के बिना तो सब अधूरा है,  घर ,बच्चे, माँ, वो तो सब की धूरी है जैसे, सब उसीके गिर्द तो चलता है,उस के पास सभी की समस्या का समाधान है,जैसे वो जादूई जिन्न हो,पर शायद उसकी आँखों की मुस्कराहट किसी के पास नहीं है,कितनी प्यारी लगती है न उसकी मुस्कराती आँखें।  कहाँ चली ग ई है  वो , रब करे बच्चों के पास ही मिले।
विचारों के साथ चलती गाड़ी बच्चों के फ़्लैट के नीचे रूक ग ई थी। डिंकी शायद क्लास लेकर आई थी, गाड़ी को देखकर थोड़ा ठिठकी,.फिर मुँह फेर लिया था , मतलब नाराज़ है प्रिसेंस। गाड़ी लाक कर वो उसकी तरफ भागा था, डिंकी मेरी प्रिसेंस नाराज़ है पापा से?

आप से  कोई क्यों नाराज़ होगा पापा, आप तो आप हैं।

यानि बिल्कुल नाराज़  ही है। 

दोनों उपर पहुच ग ए थे, डिकीं ने चाबी से दरवाजा खोल लिया था।कृष्णा आन्टी लाक कर के सो रही थी।

मंमी कहाँ है तुम्हारी?

मंमी आई है क्या यहाँ?

डिंकी इम्तेहान मत ले बेटा, पागल हो चुका हूँ पहले ही।

मुझे कुछ नहीं पता पापा, कि मंमी कहाँ है? वैसे कब आई.हैं वो यहाँ।

आज पाँचवा दिन है उसे घर से ग ए हुए, मैं हर जगह देख चुका हूँ फोन काट देती है।

और आप आज यहाँ आये हैं।

तभी फिर दरवाजा खुला था, नमस्ते बोल कर डुग्गू दूसरे कमरे में जाकर बैठ गया था।

मैं बाप हूँ तुम्हारा कोई अज़नबी नहीं जो तुम लोग बात भी नहीं करना चाहते मेरे से। मुझे पता चला कि तेरा चयन हुआ है अंतरराष्ट्रीय टीम म़े तो यहाँ भागा चला आया, और तूं है कि मुँह से बोल भी नहीं रहा।

थैक्स पापा। वो इधर आकर बोला था।

पासपोर्ट के लिए फार्म लाया हूँ मेरा एक जानकार है उससे बात करी है मैने, वो जल्द बनवा देगा।

पर  पासपोर्ट  तो बना  हुआ हैं ।

कब  बनवाया?

मंमी ने मेरा और डिंकी का दोनों का बनवा दिया था।

अब मंमी कहाँ है तेरी?

वो तो एडमिट है नैचरोपैथी अस्पताल में।

तभी आन्टी बाहर आ गई थी।

कैसे  हैं  वीरेंद्र जी।

  नमस्ते आन्टी जी।

कौनसे  अस्पताल में है चल मेरे साथ।

पर पापा रीति दीदी है उनके पास, हम क्या करेंगे? मंमा को बहुत आराम है।दवा आधी कर दी  है डाक्टर ने।

  आन्टी ने चाय बना दी थी वीरेंद्र के लिए, वो चाय पी रहे थे कि डिंकी और डुगू दूसरे कमरे में चले ग ए थे।

वीरेंद्र चाय लेकर उनके पास ही  चला गया।

डिकीं क्या बात है जो बात है खुल कर बोल दे।

मैंने क्या बोलना है पापा?


तो तूने झूठ क्यों बोला कि मंमा यहाँ नहीं आई।

अब तो पता चल गया सच आपको ।

  बेटा उस दिन वो मुझे बिना बताये मेडिकल चली ग ई,रास्ते में कुछ हो जाता तो?  बस मैंने गुस्से में सुना दिया।

सुनाया, आप ने तो उन्हें घर से निकलने को कह दिया था पापा, वो तो हमारी बात हो ग ई औरमैने उन्हें तुरंत यहाँ बुला लिया। मैं तो खुद आ रही थी पर मंमा बोली वो ठीक हैं फोन से सारे रास्ते संर्पक रहेगा। मैं  आ जाऊँगी।

डुग्गु जो अब त क चुप बैठा था। एकदम से तैश में आ गया।
पापा आप ने मेरी माँ को एक मुफ्त की नौकरानी के सिवा कुछ नहीं समझा, क्योंकि आप को पता है कि उनकी मायके साइड से कोई बैक नहीं है।पर पापा अब बहुत होगया, अब मेरी माँ की तरफ उठने वाली हर ऊँगली को पहले मुझ से निपटना होगा। मुझे आपकी जायदाद में से कुछ नहीं चाहिए। मैं अपनी माँ को अपने साथ रखूँगा। बस अब से आज से ये हीं सब खत्म।

डुगू की बातें सुनकर वीरेंद्र के चेहरे पर हल्की सी फीकी सी मुस्कान आई,अरे जवान गलती हो गई, आप की माँ से माफी माँग लेता हूँ आपके सामने ही। फिर तो खुश।

जब आपको मंमी से कोई सोहार्द ही नहीं है तो फिर ये दिखावा क्यों पापा ,पाँच दिन से किस हालत में.उन्होंने घर छोड़ा है, आप जानते ह़ै आज भी आप डुगू के पासपोर्ट के लिए आयें हैं ,वरना माँ की तो कोई चिंता ही नहीं थी।उस दिन सुबह मेरी आपसे बात हुई तो आप मंमी की हालत की बजाय मुझे बुआ और ताई से बात करवाने में बिजी थे ,तो वो अकेली मेडिकल न जाकर क्या करतीं।

अब ठीक  हो गया  न पापा, आपका पीछा छूट गया और शायद वो भी अपनी बची ज़िंदगी सकून से गुजार पायेंगी।

ये क्या बकवास है डिंकी, मैं तेरी माँ से पीछा छुड़वाना चाहता हूँ, किसने बोला तूझे ये।.

आपके व्यवहार ने पापा मैंने कभी भी सामान्य मियां बीवी की तरहं आप लोगों का व्यवहार नहीं देखा। बस ये कर दे ,वो दे दे।कभी आपको याद है आप मंमी के साथ बाज़ार ग ए हों या आपने उन्हें कुछ लाकर दिया हो।एक रोबोट की तरहंजुटी रहती थी वो। मैने तो कभी घर खर्च के लिए भी उन्हें आपसे पैसे माँगते नहीं देखा।
तभु कृष्णा आन्टी दरवाजा बजा कर अंदर आई थी।वीरेंद्र जी खाना खा ले आप और तुम भी आजाओ बच्चों।

हमे भूख नहीं है नानी। दोनो एक साथ बोले थे।
पर सुबह तो दोनो  मटर निकाल रहे थे नानी मटर के चावल अब क्या हो गया?

नानी ने.डिंकी के सिर पर हाथ फेरा था।डिंकी की रूलाई फूट पड़ी थी। आप ने देखा था न  नानी जब मंमा यहां आई तो कैसे पागलों जैसी शक्ल हो रखी थी उनकी।

सब ठीक हो जायेगा बच्चा, समय सदा एक जैसा नहीं रहता और अब तो कितना फर्क है उसे।

आय एम सारी डि़की डुग्गु मैं ये हालात जल्द बदल दूंगा बेटा।चल तुम्हारी मंमी को लेकर आते हैं।

अभी उनका इलाज है दो दिन का और बाकी, आप न ही जाये़ तो बेहतर होगा, वरना वोफिर परेशान हो जायेंगी।

मैं एक बार देख कर आ जा ऊँगा डिंकी।मैं खुद भी बहुत परेशान हूँ, उस के लिए।

डिकीं रीति को फोन  लगाती है। मंमी कहाँ है दी?


सो रही हैैं मंमी तो 

क्या हुआ?

कुछ नहीं , क्या बात है?

मुझे  लगा  कि इस वक्त सोई हैं तबीयत तो ठीक है ना।

अरे वो सुब ह शाम एक एक घंटा योगा  फिर घूमना वो थक जाती हैं बिना दवाई के सो जाती हैं।

पापा आये हैं और क ह  रहेहैं कि मिलना चाहता हूँ उनसे,।

परसों  ले ही आऊँगी उन को वापिस।

मैंने भी यही बोला है।

तुम अंकल को किसी तरहं मनाओ, तुम ऐसा करो उन्हें यहीं देहली ही रहने दो, मैं कल सुबह का इलाज दिलवा कर शाम को उनको ले ही आऊँगी। तुम अंकल का ध्यान रखो, जरूरत पड़े तो आज क्लास छोड़ देना।हमारे लिए पहलेअंकल और मंमा का सही होना बहुत जरूरी है।,और तुम गुस्से में बात मत करना अंकल से जो होना  था वो हो चुका है, आगे ऐसा न हो ये प्रयास करना है।

ठीक है,न डिकीं,

जी दी।

डिकीं ने खाना लगाकर पापा को दिया था,पापा खाना खाले।

रास्ते में कुछ खा लेंगे, तू चल तेरी माँ के पास।

पहले आप खाना खा रहें हैं पापा।

वीरेंद्र बेमन से खा रहा था। डिकीं ने डुग्गुको भी  खाना डाल दिया था। 
मुझे नहीं खाना भूख नहीं है,ले जा। डुग्गु रूआसा सा और परेशान था शायद माँ की बीती को याद करके। वो जाने ही लगा था कि वीरेंद्र उठ खड़ा हुआ।

रोटी खा ले बेटा, उसने हाथ पकड़ लिया था उसका, माँ की तो सारी बात मानते हो एकाध मेरी भी सुन लो। मान लिया तुम्हारी माँ जैसा नहीं हूँ पर हूँ तो तुम्हारा बाप ही।

भूख नहीं है पापा।

खायेगा तो लग जायेगी, चल खा ले, वीरू ने प्लेट उठा कर पकड़ा दी थी उसे।

डिकीं दही ले आई थी, वीरेंद्र को दही चावल बहुत पसंद थे।

कृष्णा आन्टी ने डिकीं का खाना भी वहीं ले आई थी।
पापा रीति दीदी कह र ही हैं कि योगा और नैचरोपैथी से मंमा का रिकवरिंग रेट बहुत अच्छा है,  और कल सुबह की पारी के बाद   ये पूरा हो जायेगा। दीदी मंमी को लेकर शाम तक आ जायेंगी,तो तब तक आप यहीं रूके।गर आप को कोई जरूरी काम नहीं है तो। वरना हम तो उन्हें फिर दोबारा मेडिकल लायेंगे ही,दवा बदलवाने के लिए, उन डाक्टर से भी दीदी की बात हो ग ई है।

वीरेंद्र बिना कुछ बोले वहीं सो गया था।

डिकीं खाना खाकर क्लास चली ग ई थी। डुग्गु भी   सो गया था।
वीरेंद्र उठा तो शाम के सात बज चुके थे, आन्टी खानेकी तैयारी में थी डुग्गु प्रेक्टिस के लिए गया था। डिंकी पानी और चाय ले आई थी।

पापा चाय पी लो।

तेरी माँ से बात हुई तेरी?

जी मंमी बिल्कुल ठीक है और कह रही थी कि इतनी अच्छी जगह हैं यहाँ पर तो साल में दस दिन जरूर आना चाहिए।

  तूं क्या कर र ही है चल बाजार चलते हैं।

क्रमशः
लेखिका, ललिता विम्मी
कहानी,औरत आदमी और छत
भिवानी, हरियाणा

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